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सोमवार, 3 नवंबर 2014

गीत - चलो एक कप चाय हो जाए



मिल बैठे सब, क्यों हैं गुमसुम
चलो एक कप चाय हो जाए

बैठे हैं तरंग के तट पर
गीत छंद के भावों बह कर
जीवन में ऐसे भी क्षण आते
मिलते सब दुविधायें तज कर
आज दुपहरी सजी हुया हुई है
लेना देना सब कुछ मिल कर
चुस्की कविता की हो या फिर
कुछ प्रसंग की बात हो जाये
चलो एक कप चाय हो जाए

मन के सुंदर सब हैं मोहक,
साथ मिले तो मिले मनोरथ
दुख का क्या, है आता जाता
सुख तो अक्सर आँख मिचाता 

भाँप सके हैं कब जीवन में
मीठा तीखा कब क्या आता,
छोड़ो इसे, पकौड़ी मिर्ची -
‘चुस्की’ गरम साथ हो जाये
चलो एक कप चाय हो जाए

हमने भी तो ऐसी ठानी
बोलेंगे बस मीठी बानी
बिन्दु, व्यास, पुर्णिमा या फिर
संजू, मीना, धरम ज़ुबानी
कमी नहीं सुंदर लोगों की
किस किस की है बात सुनानी
दूर दूर से लोग आए हैं
खान-पान संग बात हो जाये
चलो एक कप चाय हो जाए

~ अशोक सिंह

  Sep, 2014. new York.

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