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रविवार, 20 जनवरी 2013

ताजमहल

ऐ ताजमहल, ताजमहल, ताजमहल........!


फकीरों का तसव्वुर औ' शाहे-जहाँ पहल
मोहब्बत म'अमूर या मिसाल, ताजमहल!
*तसव्वुर=सपना

एक हंसीं रूह के सीने पे तराशे संगमरमर
और सन्नाई की हर हद, ये रूहानी गजल

*सन्‍नाई—कारीगरी

इक तरफ शफ्फाक पत्थर, बला की नक्काशी
फिर सैकड़ों सद चंद सितम, खून भरे पल
*सद चंद=सौ बार

इक बुल-हवस शहँ-शाह का नापाइदार इश्क़
दुनिया ने कहा प्यार की निशानी ये अव्वल

*बुल-हवस=जिसे सच्चे प्रेम के बजाए केवल कामवासना या लालसा हो
*नापाइदार = अल्पकालिक, क्षणभंगुर

किसी अर्जुमंद के इश्क़-औ-शक्‍ले-जमील पर
या बेनामो-नुमूद तेजोमहल पर खड़ा महल  

*म'अमूर=कैदी
*अर्जुमंद=मुमताज़ महल का असली नाम
*शक्‍ले-जमील—सुंदर रूप;
*बेनामो-नुमूद=गुमनाम
*तेजोमहल=(A theory) राजपूत राजाओ द्वारा बनवाया तेजोमहल मंदिर, जिसे शाहजहाँ ने कब्ज़ा कर और  हेर-फेर कर के ताजमहल का नाम दे दिया

ऐ ताजमहल, ताजमहल, ताजमहल........!

ae tajmahal, tajmahal, tajmahal..!

chaNd fakiroN ka tasavvur aur shahe-jahaaN
neem jiska hei meri jaanejaaN tajmahal


ek hanseeN rooh ke seene pe tarashe sangmarmar
aur sannaii ki ha'r ha'd, ye ruhanee gazal

ik taraf shaffaq patthar, balaa ki naqqashi
phir saikadoN sa'd chaNd sitam, khoon bhare pa'l

ik bul-hawas shahN-shah ka napaIkdar ishq
dunia ne kaha pyar ki nishani ye avval

kisi arjumaNd ke ishq-au-shakl-e-jameel par
ya benamo-numood tejo-mahal par khada mahal

*arjumand - mumtaj mahal ka asli naam
tejo-mahal=ek theory, jisme shahjehan ne rajputoN ke mandir TEJOMAHAL par kabza kar ke use Tajmahal me tabdeel kar diya tha

ae tajmahal, tajmahal, tajmahal..!

~ अशोक सिंह
   न्यू यॉर्क, 19 जनवरी, 2013   

मंगलवार, 1 जनवरी 2013

क्या कह दूँ उनके स्वागत में - 2013, 12, 11

Mother s Day copy
2013 - डा॰ कुँवर बेचैन, डा॰  सुरेश अवस्थी और श्री दीपक गुप्ता

न्यू यॉर्क मे आयोजित कवि सम्मेलन में कवियों के सम्मान मे लिखी हुयी कवितायें;

जीवन की विषम दिनचर्या से निकल कर काव्य की सौम्य, नरम पर जागरूक दुनिया में आने के लिए पुनः आप सब का स्वागत है। 

क्या कह दूँ उनके स्वागत में
सागर को क्या नीर पिलाऊँ
सूरज को क्या दीप दिखाऊँ
चाहूँ क्या, क्या न कर जाऊँ
हरि ही करो, हरो मेरी दुविधा
दे दो स्वागत स्वर आगत में
जो कह दूँ उनके स्वागत में

और हरि ने एक बार फिर से दुविधा हरने में मदद की। जिस तरह से की, वह प्रस्तुत है .......!

कुँवर जी के सुर-मय, गीतों की अशर्फ़ियां, ऐसे झड़ें जैसे बस कुबेर का भंडार हो
दीपक जी के हास्य-दीप, पर दु:खी मन पतंग, जले जैसे उसे जान से न प्यार हो
सुरेश जी के काव्य-छंद, मन में लिए तरंग, हंसी की गुद-गुदी, संग व्यंग्य वार हों
गीत छंद, हास्य रंग आज संग चहुं ओर, पहले हुयी न ऐसी काव्य की बौछार हो
पहले हुयी न कभी, ऐसी बौछार हो............।



2012 - कवि गजेंद्र सोलंकी, कवियत्री सरिता शर्मा और हास्य कवि संजय झाला

घनन घनन गरजे गजेंद्र, संग मधुर सुघर गीत और वीर रस की फुहार हो
संजय उवाच बने  दृत  दृष्टि हम  सबकी, ऐसी करारी  व्यंग्य की  मार हो
सरिता की कल कलल कर दे मन तरल ऐसे गीत और गजल की फुहार हो
गीत छंद, हास्य रंग, आज संग चहु ओर पहले हुयी न कभी ऐसी बौछार हो।
पहले हुयी न कभी, ऐसी बौछार हो............।


सर्वेश अस्थाना, डा॰ विष्णु सक्सेना, प्रवीण शुक्ल - 2011

शब्दों का ही फेर है, प्रेम - पीर - सम्मान,
मोती हिय से पिरा तो, ३ लोक गुण-गान!
~ अशोक सिंह, न्यू यॉर्क