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शनिवार, 6 अप्रैल 2013

आज़ाद शेर


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गुलाबो, मैखाने के जाम मेरे किसी काम के नहीं
तुम्हारी मदभरी आँखों से मन शराबी हो जाता है
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बदल गए हैं हम भी वक़्त के साथ-साथ
अब हम भी चुन चुन के बदला लेते हैं

जब वो चूमते हैं हमारे प्यासे होठों को
हम उनकी रूह तक भी चूम लेते हैं

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आते आते आप की, आहट रुक जो जाती है
आप को खेल लगता है हमारी जान जाती है

aate aate aap ki aahat ruk jo jaati jai
aap ko khel lagta hai, hamari jaan jaati hai
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इन खुश्क आँखों की वीरानगी पर न जा,
हर एक बात चेहरे से ज़ाहिर नहीं होती ।
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सहर फैला रही है अपने बाजू,
मेरा साया सिमटता जाता है!

कैसे जीऊँ, मर मर के हज़ार बार
अब तो दम सा निकलता जाता है !
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अगर किस्मत से दिख जाये, नज़ाकत की झपक देखो,
मोहब्बत हर गुलिस्तां में, कि पल दो पल झलक देखो,
इब्तिदा और इश्क में कम हो रहा अब फ़ासला,
हंसी लम्हे जो मिल जायें, जियो आखिर तलक, देखो ।
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तार्रुफ का उनसे इत्तेफाक़ हुआ है ज़रूर
ये और बात है कि उन्हें याद भी नहीं । 
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किस्तों में मिले यार-दोस्त, प्यार औ रहबर
चलते जो सारी उम्र हम-सफर नहीं मिले ।

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कहने को इस कायनात में क्या कुछ नहीं है
पर देखने को रहता है क्या, तुझे देखने के बाद 

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ठोकर मे है वो दौलत, पैरों तले वो मान
रंजिश करे जो तेरे, और मेरे दरमियान !
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प्रेम की गाथा रही अब तक की सारी शायरी
भर गयी जाने न कितने शायरों की डायरी
व्यास के दो शब्द हैं इक प्रेम करने वाले को
हो भला या बुरा लिखा, बात कहते हैं खरी ।

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इस कदर जलवा फरेब हैं कि,
आईने से भी शरमा रहे है वो ।

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कुछ तुम भी चलो, कुछ हम भी चलें
साथ चलने का दौर, यूं ही चलता रहे
पास आओ न आओ मगर कुछ करो
खून दर्द-ए-जिगर से मेरे रिसता रहे । 

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आज और कल हों, बस गुलाब की बातें
हमारे दरमियाँ बातें, बस प्यार की बातें
गर उतरे ख़ुशबूओं की तह तक हम-तुम
तो उम्र भर होती रहेंगी खुमार की बातें !

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सजा जहन मे गाँव का पनघट, और सभी पहचाने मोड़
लेकिन जो यादें दुखदायी, भूल उन्हें चल पीछे छोड़ ।

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दो शाम की रोटी मेरी ले, इन दीनों का भी पेट तू भर,
मैं भी बंदा तेरा, वो भी, तेरा ही common खाता है ।

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७/१३/११ मुम्बई बम ब्लास्ट:

जो घायल हुये हादसे में इक आस ढूँढने निकले थे
रोज़ी रोटी की चिंता में, मम्मी और पापा निकले थे
सपने कल के ले आँखों मे थे हिन्दू मुस्लिम ईसाई
क्या पता उन्हें, खूंखार दरिंदे मौत बांटने निकले थे ।
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कत्ल करने के लिए हथियार का क्या काम है,
एक नज़र तो डालिए, हम यूं ही मर जाएँगे ।
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कह पाये तो ढाई आखर गागर, सागर भरते हैं
नाच नहीं आये भय्या तो आँगन टेढ़ा कहते हैं ।
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शब्दों का ही फेर है, प्रेम - पीर - सम्मान,
मोती हिय से पिरा तो, ३ लोक गुण-गान।
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