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मंगलवार, 10 मार्च 2015

साथ कैसे छोड़ दूँ मैं?


प्रेम की चल डगर मे संग, राह कैसे मोड़ लूँ मैं?
साथ कैसे छोड़ दूँ मैं?

प्रीतम, प्रीत प्रेम से आगे
बंधन हैं पर, कच्चे धागे
प्रेम भँवर जा गहरे पैठे 
उद्वित मन अब कैसे भागे
रग रग रंग गई प्रेम चुनरिया, धागा प्रेम तोड़ दूँ मैं
साथ कैसे छोड़ दूँ मैं?

दास-भक्ति सम प्रेम सिखा कर
कांता प्रेम की राह दिखा कर
काम, काम से निकल सुधा-मय 
छितरे मन सर्वस्व पिला कर
धड़कन बनी चाप कदमों की, आँख कैसे खोल दूँ मैं
साथ कैसे छोड़ दूँ मैं?

न मैं तुम, न प्रेम त्रिवेणी
तुम मय मैं, तुम मेरी वेणी
पैठे गहरे आदि-अंत अब
मंथन करते  बिंदु-त्रिवेणी
प्रेम जाप की महक फैल गई, वास कैसे छोड़ दूँ मैं
साथ कैसे छोड़ दूँ मैं?

~ अशोक सिंह
  न्यू यॉर्क, Jan 15, 2015

जो तुम आ जाती एक बार..!


जो तुम आ जाती एक बार!




सुर-मय हो जाते मन के तार
प्यासी चितवन बोझिल आँखें
तन रोम - रोम करता गुहार
प्रियतमा छवि को देख द्वार
मन करता मन से मनुहार  
अँखियों से मादक नज़र डार
न्योछावर, कर सोलह सिंगार
मुझ-मय हो जाती सभी हार
कर इस जीवन का पूर्ण सार,
जो तुम आ जाती एक बार...!

मन सिंदूरी महका होता
गुल मन-आँगन चहका होता
सपनों की सेज से अलसाया
तन मद- उन्मत्त बहका होता
कब से चुप चाहें कुछ कहतीं
भावुक आहें  न चुप रहतीं
सबकी गुहार करती द्योतित
बाहें आलिंगन को उठतीं
देती तुम पर सर्वस्व वार,
होतीं तुम मैं बस और प्यार,
जो तुम आ जाती एक बार….!

~ अशोक सिंह
  न्यू यॉर्क, मार्च 10, 2015