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रविवार, 20 नवंबर 2011

सूरज पे रोशनी !

अगर चाँद पर चाँदनी नहीं है होती,
तो क्या सूरज पे भी रोशनी नहीं होती

मेरे घर के किवाड़ खुद ही खुल जाते हैं,
उनके आने मे कोई आहट भी नहीं होती

रेत तो रेत है, निकल जाएगी पैरो के तले,
कोसते रेत को, जिसकी नीयत है यही होती

रेत पर नाम लिखा और वो बह भी गया
लौ मे जलने वालों की कोई उम्र नहीं होती

कभी मिलना फुर्सत मे तो बताएँगे हम भी
चाहत मे हमारी दर-ओ-दीवार नहीं होती।

~ अशोक सिंह  
   न्यू यॉर्क 

मुक्तक - ७/१३/११ मुम्बई बम ब्लास्ट

जो घायल हुये हादसे में इक आस ढूँढने निकले थे
रोज़ी रोटी की चिंता में, मम्मी और पापा निकले थे
सपने कल के ले आँखों मे थे हिन्दू मुस्लिम ईसाई
क्या पता उन्हें, खूंखार दरिंदे मौत बांटने निकले थे ।

~ अशोक सिंह
  न्यू यॉर्क, 2013