अगर चाँद पर चाँदनी नहीं है होती,
तो क्या सूरज पे भी रोशनी नहीं होती
मेरे घर के किवाड़ खुद ही खुल जाते हैं,
उनके आने मे कोई आहट भी नहीं होती
रेत तो रेत है, निकल जाएगी पैरो के तले,
कोसते रेत को, जिसकी नीयत है यही होती
रेत पर नाम लिखा और वो बह भी गया
लौ मे जलने वालों की कोई उम्र नहीं होती
कभी मिलना फुर्सत मे तो बताएँगे हम भी
चाहत मे हमारी दर-ओ-दीवार नहीं होती।
~ अशोक सिंह
न्यू यॉर्क
तो क्या सूरज पे भी रोशनी नहीं होती
मेरे घर के किवाड़ खुद ही खुल जाते हैं,
उनके आने मे कोई आहट भी नहीं होती
रेत तो रेत है, निकल जाएगी पैरो के तले,
कोसते रेत को, जिसकी नीयत है यही होती
रेत पर नाम लिखा और वो बह भी गया
लौ मे जलने वालों की कोई उम्र नहीं होती
कभी मिलना फुर्सत मे तो बताएँगे हम भी
चाहत मे हमारी दर-ओ-दीवार नहीं होती।
~ अशोक सिंह
न्यू यॉर्क