सांझ की बयार में, बौरों की खुमारी
सुरमई लाली, उड़ते खगों की कतारें
थके हुये पुष्पों की बिखरी सुगंध
अलसायी आंखों की जगती उमंग
पास आओ तान छेड़ो प्रीत के प्रसंग का
एक गीत और कहो प्रेम का, बसंत का
कोयल की कूक सी मीठी एक तान
छुपी छुपी, चंचल पर मादक मुस्कान
केसरिया रंग मिले सांझ के सुरूर
तितलियों से छुई-मुई मन के मयूर
प्यार मे सराबोर सांसों की त्रिष्न का
एक गीत और कहो प्रेम का, बसंत का
~ अशोक सिंह, न्यू यॉर्क
Mar 22, 2009
~ अशोक सिंह, न्यू यॉर्क
Mar 22, 2009