जन-मन जिव्ह्य विराजे
भारत भाषण हिंदी है
हो मन-पूर्ति जिसे पढकर
है हिंद भाषाओं की सहचर
जो जुड़ती मर्म से कोमल
वो मन का ध्यान हिंदी है।
ये बच्चन की है अलमस्ती,
ये दिनकर की है रसवन्ती
जो गहरी भी है और सादी
भाष्य विज्ञान हिंदी है।
निकलती दिल से हिन्दी है
'क्या बात है' से हिन्दी है
जगत-मन मेल करवाती
स्रोत अविराम, हिन्दी है
~ अशोक सिंह, न्यू यॉर्क,
नवंबर 12, 2014
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