Disable Copy Content

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

गीत - जो प्रतीत हो कब होता है।

जो प्रतीत हो कब होता है।

सबको मिलती दृष्टि एक कब
रहती सबसे सृष्टि एक कब 
कुछ पा सब, बाकी बस-कुछ, कुछ का जीवन बस रोता है ।
जो प्रतीत हो कब होता है।

सपने निष्छल मानस मन के
सच होते, कब कितने जन के
एक सत्य से जीवन सार्थक, फिर क्यों मन सपने बोता है ।
जो प्रतीत हो कब होता है।

जीवन सच या केवल भ्रम है
निर्विकार का बस अनुक्रम है
मृग-मरीचिका में संभ्रमित, जग को मानस क्यों ढोता है।
जो प्रतीत हो कब होता है।

भटकी हुयी ज्यों नाव हो,
संग भ्रमित अंतर्भाव हो,
हर सांस की दे कर दुहाई, सच के मग में क्यों रोता है।
जो प्रतीत हो कब होता है।

गीत - याद फिर तुम बहुत आए ।

याद फिर तुम बहुत आए ।
उषा पट पर जब सुनहरी, किरण ने सपने दिखाये ।
याद फिर तुम बहुत आए ॥

जब पड़ीं पावस फुहारें
मीत की मनहर गुहारें
सजल तन को तापती
विजन की ठंढी पुकारें
उस घड़ी में सजन तुम बिन, आस भी कैसे लगाए ।
याद फिर तुम बहुत आए ॥

पवन सायं, नील अंबर
चले सब उपवन डगर पर 
फूल पत्ते भ्रमर तितली
थके हारे गुनगुना कर
पर अपरिमित चाह मेरी, मिलन की अग्नि जलाए ।
याद फिर तुम बहुत आए ॥

रात शीतल चाँदनी की
गीत की भी रागिनी की
चाँद तारे मिल-मिला कर
अग्नि जलवाते विरह की
जब अलगनी में कोई तारा, भोर का घूँघट उठाए ।
याद फिर तुम बहुत आए ॥

गीत - तुम कहो तो मान लूँ मैं

तुम कहो तो मान लूँ मैं
गीत की हर रागिनी के, शब्द सारे जान लूँ मैं ।
तुम कहो तो मान लूँ मैं ।।

तुम कहो तो याद के पल
आज या, गुज़रे हुये कल
एक माला में पिरो कर
हँसीं, वो उन्माद के पल
ज़िंदगी को, उस खुमारी से नया अंजाम दूँ मैं ।
तुम कहो तो मान लूँ मैं ।।

रही सारी शर्त, सब मंजूर
नहीं जाना कभी हमसे दूर
तुम बनो चंदा गगन में
तो निहारूँ बन चकोर
दूरियाँ हैं, क्या गगन से हाथ तेरा मांग लूँ मैं ।
तुम कहो तो मान लूँ मैं ।।

सौम्य तन की धूप तेरी
शांत मन की छांव तेरी
इंद्र को मदहोश कर दे
हृदय बसती गंध तेरी
इस समर्पण की घड़ी में, प्रेम-रस का पान लूँ मैं ।
तुम कहो तो मान लूँ मैं ।।

गीत - कहूँ दिल की बात किस कर !

कहूँ दिल की बात किस कर !

मैं रहूँ चुप सिवा उसके हर किसी से
मौन रह कर भी करूँ विनती उसी से
विवश असमंजस रहूँ जब भी अकेला
प्राण उसके बसे उर, मैं हूँ उसी से ।

पर अलग कैसे रहूँ, उससे बिछड़ कर,
कहूँ दिल की बात किस कर !

जानने से पूर्व मुझको चाहती थी
गंध मिस्री सांस मेरी जानती थी
फिजाँ मेरी इत्र से उसके महकती
मुझे मुझसे खूब वो पहचानती थी

साथ जन्मों जन्म का, फिर क्या स्वयंवर,
कहूँ दिल की बात किस कर !

नयन मेरे आसना में हैं उसी के
हृदय के आवेग में झरने उसी के
मरुस्थल सा हींन था सूखा सरोवर 
आज उत्पल खिले तो सपने उसी के

चाह और अनुरक्ति में, उसकी जाऊंगा संवर,
कहूँ दिल की बात किस कर !

रविवार, 8 दिसंबर 2013

गीत - स्वागतम

स्वागतम, स्वागतम, स्वागतम...!
हम सभी के हृदय से सहश्रों नमन,

सुशीलम, वंदनम, स्वागतम...!
स्वागतम, स्वागतम, स्वागतम...!!

फूल इठलाये, इतरायी हैं तितलियाँ
खग उड़ें पंक्ति में, गायें रागिनियाँ
मन प्रफुल्लित बिखेरे हुये हैं सुमन

सुशीलम, प्रियम, स्वागतम...!
स्वागतम, स्वागतम, स्वागतम...!!

संध्य की भी अजब आज है लालिमा
चन्द्र देखे कनखियों से, बांधे समा
आज सुमधुर लगे वाद्य की हर तरंग

सुशीलम, विनीतम, प्रियम...!
स्वागतम स्वागतम स्वागतम...!!

कौन आता किसी के लिए कब-कदा 
आए हो, अब रहोगे हृदय ही सदा
जीते मन, इसलिए आज अर्पित नयन

सुशीलम, देवी मम, पूजितम् ...!
स्वागतम स्वागतम स्वागतम...!!

~ अशोक सिंह
   न्यू यॉर्क, दिसंबर 8, 2013