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रविवार, 11 नवंबर 2012

दीप घर घर में जले हों



दीप  घर घर में जले हों
पुष्प हर मन में खिले हों
इस अमावस रात के जैसी न दूजी बात हो ।
दीपावली सी रात हो ।
दीपावली सी रात हो ।

मन में संशय न रचे हों
मैलरंजिश  न बचे हों
दीप लड़ियों से सुसज्जित दीप्ति जैसे प्रात हो ।
दीपावली सी रात हो ।
दीपावली सी रात हो ।

-        -  अशोक सिंह, न्यू यॉर्क
      11-10-12


गर वो तुम से रूठ जाएँ



गर वो कहें कि तुमसे रूठ जाएँगे
सोच लो किस तरह मनाओगे

ये नातवानी उन्ही की चाहत से 
तुम भला किस तरह छुपाओगे ।

शिनासाई ये फकत चार दिन की
उम्र भर कैसे  इसे निभाओगे ।

हसरतों के फूलों से बहले खूब
खारे-आरज़ू से कैसे निभाओगे

आज जलवा-गर अंजुमन में बैठे हैं
कल की महफिल कहाँ सजाओगे ।

वस्ल की रात की बात करते हो
अंजामे-इश्क़ को कैसे निभाओगे 

नातवानी - दुर्बलता, शिनासाई - पहचान 

~ अशोक सिंह, न्यू यॉर्क 
  11-10-12

प्रभु तुम पथ हो या मंजिल हो?



प्रभु तुम पथ हो या मंजिल हो?

यदि तुम पथ तो हम सब राही
'चरै-वयति' की नियति के वाही
चलना होगा हम सबको ही, काया जर्जर हो, निर्मल हो!
प्रभु तुम पथ हो या मंजिल हो?

यदि तुम पथ तो हम सब जोगी
जबरन साधक, मूक वियोगी
हिमगिरि शीत विषम सरणी चल, काया मनु ही गलती हो !
प्रभु तुम पथ हो या मंजिल हो?

यदि तुम पथ तो ऐसा कर दो
मानस जीवन को ये वर दो
तुमसे जो पथ, बन वो पत्थर तुम में ही हम मूलक हो ।
प्रभु तुम पथ हो या मंजिल हो?

यदि मंजिल, तो मत भटकाओ
चक्रव्यूह में मत अटकाओ
जीवन माया गुत्थी सुलझे, तुम में शाश्वत शामिल हो !
प्रभु तुम पथ हो या मंजिल हो?

तुम मंजिल तो, कभी पिता बन
राह दिखाओ, निर्गुन या गुन
गुरु की भांति कभी तो उंगली पकड़ो, जीवन सार्थक हो !
प्रभु तुम पथ हो या मंजिल हो?

तुम मंजिल तो मंजिल पथ बन
निहित करो, दो व्यापक दर्शन
मंजिल में पथ, पथ में मंजिल, अहम ब्रह्म मे शामिल हो !
प्रभु तुम पथ हो या मंजिल हो?

-          अशोक सिंह, न्यू यॉर्क
11-10-12

रविवार, 20 मई 2012

मुक्तक - कुछ तुम भी चलो

कुछ तुम भी चलो, कुछ हम भी चलें
साथ चलने का दौर, यूं ही चलता रहे
पास आओ न आओ मगर कुछ करो
खून दर्द-ए-जिगर से मेरे रिसता रहे ।

~ अशोक सिंह