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रविवार, 24 मई 2015

मुक्तक - पत्थरों से बना घर जो



पत्थरों से बना घर जो दुनिया फेंके तेरी ओर
आग शोलों की जलाए अब न तेरा, मेरा ठौर
सभ्यता कितनी चली इंसानियत के सफर में
कलश पर असहाय मानव, और कितना और!

~ अशोक सिंह
   न्यू यॉर्क, मई 24, 2015

गुरुवार, 7 मई 2015

तुम मिले....!


http://blog.goshort.nl/wp-content/uploads/Thought-of-You-Ryan-Woodward.jpeg

याद जब आई तुम्हारी दिल खिला और तुम मिले
गीत जब भी गुनगुनाया मन खिला और तुम मिले

यूं बहुत सी मुश्किलें हैं रोज़ मर्रा काम में
जब मिली फ़ुर्सत तसव्वुर में घड़ी भर तुम मिले

रोक रखे थे न जाने बांध कब से आंसुओं के
बह गया सैलाब खारा मन खुला और तुम मिले

रात गुज़री लम्हा लम्हा बदलते करवट हज़ार
भोर बेला पलक झपकी, ख़्वाब आए तुम मिले

ज़िन्दगी बे-रब्त तन्हा, ग़म खुशी और धूप छांव
पर मुकम्मल हुयी बेशक जब कभी भी तुम मिले

बे-रब्त=बे-तरतीब

~ अशोक सिंह
   मई 1, 2015 न्यू यॉर्क

कल का कुछ ऐतबार नहीं है



https://abundantriches.files.wordpress.com/2012/03/now1.jpg

     आज और यह पल ही सच है
     इसी से निकले राह नई है
     वर्तमान में जी लो बंधु
     कल का कुछ ऐतबार नहीं है

पल क्या है, इक कलरव खग का
डगमग पग इस जीवन मग का
बीते जीवन की परिभाषा
गुज़रे कल, इतिहास समय का
इस पल का सम्मान रहे पर
यह कल की अनमोल धरोहर  
इस पल को न छोडना रीता
समय न देता दूसरा अवसर
     पल पल की महिमा को समझो
     इस जीवन का सार यही है
     वर्तमान में जी लो बंधु
     कल का कुछ ऐतबार नहीं है

जीने का दम भरने वालों
जीना तुम्हें किधर आया है
रिक्त है जीवन, जीवन-चर्या
कोई न संगी, सरमाया है
ख़ुद को चाहा टूट - टूट, या
ख़ुद की परिधि में ही जीवन
उससे बाहर निकल सके न
छुआ न कोई और दुखी मन
     दे दो एक पल दुखियारे को
     ऐसा और उपकार नहीं है
     वर्तमान में जी लो बंधु
     कल का कुछ ऐतबार नहीं है  

भागम-भाग लगी है हर पल
लेकिन लक्ष्य नहीं मालूम है
समय चक्र से होड़ लगी है
लूँ क्या पक्ष नहीं मालूम है
कभी समय ठहरा कर देखो
झुठलाये हर प्यार को देखो
भूल सतत बौराये जग को
जीवन के ठहराव को देखो
     चाल बदल कर काल गति
     को करना वश, दुष्वार नहीं है
     वर्तमान में जी लो बंधु
     कल का कुछ ऐतबार नहीं है

तिल-तिल सुलगे उद्वेलित मन
पल-पल हाथ निकलता जीवन
यूं तो बहुत जमा की पूंजी
चिंता पर असली संचित धन
सुंदर मुख फिर मृदुल बनाओ
भृकुटि, बल की छाप मिटाओ
हर दिन कर लो उत्सव जैसा
अंतरंग, प्रिय संग मनाओ
     मन से धनी बने हैं जो जो
     संग ईश्वर, संसार वहीं हैं
     वर्तमान में जी लो बंधु
     कल का कुछ ऐतबार नहीं है

~ अशोक सिंह
   मई 3, 2015 न्यू यॉर्क