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सोमवार, 3 नवंबर 2014

गीत - मन मीत बनो, तो चैन आए




मन मीत बनो, तो चैन आए

कुछ दर्द बढ़ा कुछ पीर बढ़ी
मन में धुंधली तस्वीर गढ़ी
कुछ दर्द के बेल और बूटों से
दिल नें दुखती तस्वीर मढ़ी
ये सच्चे दर्द या झूठे हैं
पर मन को लगे अनूठे हैं
कोई झूठ तसल्ली दे जाये
मन को कोई ढाढ़स दे जाये
मन में रहते, तो चुभते हैं
जाने अंजाने उगते हैं
कोई सीख सिखाओ, धीर धरो
इस भटके पर भी करम करो  
मन को भी कुछ आराम आये  
मन मीत बनो, तो चैन आए

आँसू की भाषा, सब मानें
कोई मन की पीर को भी जाने
जब दुखती टीसें दबी रहें
मन की आँखें डब-डबी रहें
बाहर मुस्कानों का बाना
कोई कितना ओढ़े, या माने
दुख की आँचल जब तर जाये
आँसू बह निकलें, न माने
कोई मन के भीतर झांक भी लो
क्या दुखता है कोई भाँप भी लो 
जब मन खुश तो दुनिया गद-गद
है सच ये ही, कोई जांच भी लो
कोई पीर पराई, समझ, हरो
हमसे भी थोड़ा धीर धरो
दुखियों के भी कोई काम आए
मन मीत बनो, तो चैन आए

माना सुख की ही आशा में
दो पल की प्रेम अभिलाषा में
भोला मन है, भरमाता है
भर प्रेम पींग, शरमाता है
पर ढाई आखर प्रेम भला
कब ढाई दिन से अधिक चला
दो क्षण की भावुक आशा में
जीवन भर लिया निराशा में
फिर इल्जामों से कोई भिड़ा
जीते जी मर कर कोई लड़ा
अब पीर नहीं, कोई चाह नहीं
जब आगे कोई दिखती राह नहीं
कोई उंगली थामो, गले लगो
कोई बनो रोशनी, आस जगो
भटकों को कुछ आराम आए
मन मीत बनो तो चैन आए।   

~ अशोक सिंह
  सितंबर 2014, न्यू यॉर्क 

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