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बुधवार, 3 जून 2015

क्या कह दूँ उनके स्वागत में - 2015

Poets Trio
2015 - अरुण जेमिनी, ऋतु गोयल और वेद प्रकाश वेद

न्यू यॉर्क मे आयोजित कवि सम्मेलन में कवियों के सम्मान मे लिखी हुयी कवितायें;

जीवन की विषम दिनचर्या से निकल कर काव्य की सौम्य, नरम पर जागरूक दुनिया में आने के लिए पुनः आप सब का स्वागत है।

क्या कह दूँ उनके स्वागत में
सागर को क्या नीर पिलाऊँ
सूरज को क्या दीप दिखाऊँ
चाहूँ क्या, क्या न कर जाऊँ
हरि ही करो, हरो मेरी दुविधा
दे दो स्वागत स्वर आगत में
जो कह दूँ उनके स्वागत में

और हरि ने एक बार फिर से दुविधा हरने में मदद की। जिस तरह से की, वह प्रस्तुत है .......!

ताऊ हरयाणवी की, ज्ञान शिखा ऐसे जले, श्रोता जन अट्टहास कलश पे सवार हो
ऋतु जी की सौम्य-सरल, भाव-अनुभूति तरल, हिय बसें गीत-गज़लों की फुहार हो
वेद जी का कविधर्म, व्यंग्य और हास्य-मर्म, पैनी 'हंसी खेल' जैसी तीखी कटार हो
गीत छंद हास्य रंग, आज संग इस तरंग, पहले हुयी न ऐसी काव्य की बौछार हो
पहले हुयी न ऐसी काव्य की बौछार हो ...!

*'हंसी खेल'=वेद जी की प्रकाशित पुस्तक

~ अशोक सिंह, न्यू यॉर्क
    मई 30, 2015

क्या कह दूँ उनके स्वागत में - 2014


Poets 3faces copy
2014 - कवि प्रदीप चौबे, श्री आलोक श्रीवास्तव और श्री सर्वेश अस्थाना

न्यू यॉर्क मे आयोजित कवि सम्मेलन में कवियों के सम्मान मे लिखी हुयी कवितायें;


चौबे जी की भीमकाया, बैठ हास्य-तीर पर, जाके ऊंचे अट्टहास शिखर सवार हो
आलोक के भावों से, महक उठे सारे रिश्ते, मातृ दिवस ममता भरा हो, दुलार हो
सर्वेश की गरुड दृष्टि ऐसी करे व्यंग्य वृष्टि राहुल से बहनजी तक सबकी पुकार हो
गीत छंद, हास्य रंग आज संग चहुं ओर, पहले हुयी न ऐसी काव्य की बौछार हो
पहले हुयी न ऐसी काव्य की बौछार हो ...!

~ अशोक सिंह     न्यू यॉर्क 

हर जगह तेरी तलाश है




आलम है अब कि हर जगह तेरी तलाश है
ग़म, चश्म-ए-आब या ख़ुशी, तेरी तलाश है।

भर जाये ख़ुशबुओं से ज़हन तेरे ज़िक्र पर
भूले घड़ी दो घड़ी दिल फ़िक्र-ए-मआश है।

साहिल हो समंदर या संग मौजे-मुसलसल
मिस्ल-ए-हुबाब हस्ती है, पर ख़ूब खास है।

बाद-ए-सबा या कली कोई चटखे शाख़ पर
तेरा ख़याल, ता-ब-लब जलता पलाश है।

दुनिया के रंगो-रंग, हर मंज़र के दरम्यान
जब दिल-ए-इज़्तिराब हो तो कैसी आस है।

अब तक गुज़ार उम्र दी सौ पेच-ओ-ताब में 
आओ कि याद-ए-रफ़्तगाँ भी पाश-पाश है।




चश्म-ए-आब = गीली आ॑ख
फ़िक्र-ए-मआश = आजीविका/कमाई की चिंता
मिस्ल-ए-हुबाब = बुलबुले की तरह
ता-ब-लब = होठो॑ पर
इज़्तिराब = व्याकुल
पेच-ओ-ताब = उल्झन
याद- -रफ़्तगाँ = पुराने दिनों की याद


~ अशोक सिंह, न्यू यॉर्क
    जून 3, 2015,