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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

गीत - जो प्रतीत हो कब होता है।

जो प्रतीत हो कब होता है।

सबको मिलती दृष्टि एक कब
रहती सबसे सृष्टि एक कब 
कुछ पा सब, बाकी बस-कुछ, कुछ का जीवन बस रोता है ।
जो प्रतीत हो कब होता है।

सपने निष्छल मानस मन के
सच होते, कब कितने जन के
एक सत्य से जीवन सार्थक, फिर क्यों मन सपने बोता है ।
जो प्रतीत हो कब होता है।

जीवन सच या केवल भ्रम है
निर्विकार का बस अनुक्रम है
मृग-मरीचिका में संभ्रमित, जग को मानस क्यों ढोता है।
जो प्रतीत हो कब होता है।

भटकी हुयी ज्यों नाव हो,
संग भ्रमित अंतर्भाव हो,
हर सांस की दे कर दुहाई, सच के मग में क्यों रोता है।
जो प्रतीत हो कब होता है।

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