इसीलिये बिन मौसम बादल छायें हैं ॥
तिमिर बहुत गहरा है लेकिन,
जीवन भी उतना ही दुर्गम ।
रात्रि प्रहर कटते जाते हैं,
बोझिल पलकें गिनती क्षण-क्षण ॥
आंखों मे सपने कुछ-कुछ अलसायें हैं ।
लगता मेरे गीत किसी ने गाये हैं ।
इसीलिये बिन मौसम बादल छायें हैं ॥
पतझर की रुतु, कैसी ये रितु,
क्या बयार क्या पावस रुन-झुन ।
कोपल, किसलय, कोकिल किलकिल,
कल की बातें, कल के ये दिन ॥
कुछ बेमौसम फूल यहां मुसकायें हैं ।
लगता मेरे गीत किसी ने गाये हैं ।
इसीलिये बिन मौसम बादल छायें हैं ॥
जीवन कठिन दुखों की गागर,
शंशयमय पनघट की हलचल ।
जीवन डोर चलेगी जबतक,
कठिनाई पनपेंगी पल-पल ॥
खुशियं के ये अश्रु सहस भर आयें हैं ।
लगता मेरे गीत किसी ने गाये हैं ।
इसीलिये बिन मौसम बादल छायें हैं ॥
प्रेम-रहित नीरस जीवन यह,
किस पर मै न्योछावर करता ।
आस अभी तक लगी जहां पर,
ऊष्ण, शुष्क मरुस्थल मिलता ॥
मधुर मदिर के जाम कहीं छलकायें हैं ।
लगता मेरे गीत किसी ने गाये हैं ।
इसीलिये बिन मौसम बादल छायें हैं ॥
~ अशोक सिंह
न्यू यॉर्क, 6/19/07
2 टिप्पणियां:
अच्छी कवितायें हैं।
bahut pyari rachna hai apki
lagta hai gakar hi likhi hai apne
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