आलम है अब कि हर जगह तेरी तलाश है
ग़म, चश्म-ए-आब या ख़ुशी, तेरी तलाश है।
भर जाये ख़ुशबुओं से ज़हन तेरे ज़िक्र पर
भूले घड़ी दो घड़ी दिल फ़िक्र-ए-मआश है।
साहिल हो समंदर या संग मौजे-मुसलसल
मिस्ल-ए-हुबाब हस्ती है, पर ख़ूब खास है।
बाद-ए-सबा या कली कोई चटखे शाख़ पर
तेरा ख़याल, ता-ब-लब जलता पलाश है।
दुनिया के रंगो-रंग, हर मंज़र के दरम्यान
जब दिल-ए-इज़्तिराब हो तो कैसी आस है।
अब तक गुज़ार उम्र दी सौ पेच-ओ-ताब में
आओ कि याद-ए-रफ़्तगाँ भी पाश-पाश है।
चश्म-ए-आब = गीली आ॑ख
फ़िक्र-ए-मआश = आजीविका/कमाई की चिंता
मिस्ल-ए-हुबाब = बुलबुले की तरह
ता-ब-लब = होठो॑ पर
इज़्तिराब = व्याकुल पेच-ओ-ताब = उल्झन
याद-ए -रफ़्तगाँ = पुराने दिनों की याद
~ अशोक सिंह, न्यू यॉर्क
जून 3, 2015,
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