न्यू यॉर्क मे आयोजित कवि सम्मेलन में कवियों के सम्मान मे लिखी हुयी कवितायें;
जीवन की विषम दिनचर्या से निकल कर काव्य की सौम्य, नरम पर जागरूक दुनिया में आने के लिए पुनः आप सब का स्वागत है।
क्या कह दूँ उनके स्वागत में
सागर को क्या नीर पिलाऊँ
सूरज को क्या दीप दिखाऊँ
चाहूँ क्या, क्या न कर जाऊँ
हरि ही करो, हरो मेरी दुविधा
दे दो स्वागत स्वर आगत में
जो कह दूँ उनके स्वागत में
और हरि ने एक बार फिर से दुविधा हरने में मदद की। जिस तरह से की, वह प्रस्तुत है .......!
ताऊ हरयाणवी की, ज्ञान शिखा ऐसे जले, श्रोता जन अट्टहास कलश पे सवार हो
ऋतु जी की सौम्य-सरल, भाव-अनुभूति तरल, हिय बसें गीत-गज़लों की फुहार हो
वेद जी का कविधर्म, व्यंग्य और हास्य-मर्म, पैनी 'हंसी खेल' जैसी तीखी कटार हो
गीत छंद हास्य रंग, आज संग इस तरंग, पहले हुयी न ऐसी काव्य की बौछार हो
पहले हुयी न ऐसी काव्य की बौछार हो ...!
*'हंसी खेल'=वेद जी की प्रकाशित पुस्तक
~ अशोक सिंह, न्यू यॉर्क
मई 30, 2015
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें