Ashok's Hindi Kavita Blog
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रविवार, 24 मई 2015
मुक्तक - पत्थरों से बना घर जो
पत्थरों से बना घर जो दुनिया फेंके तेरी ओर
आग शोलों की जलाए अब न तेरा, मेरा ठौर
सभ्यता कितनी चली इंसानियत के सफर में
कलश पर असहाय मानव, और कितना और!
~ अशोक सिंह
न्यू यॉर्क, मई 24, 2015
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