इसी से निकले राह नई है
वर्तमान में जी लो बंधु
कल का कुछ ऐतबार नहीं है
पल क्या है, इक कलरव खग का
डगमग पग इस जीवन मग का
बीते जीवन की परिभाषा
गुज़रे कल, इतिहास समय का
इस पल का सम्मान रहे पर
यह कल की अनमोल धरोहर
इस पल को न छोडना रीता
समय न देता दूसरा अवसर
पल पल की महिमा को समझो
इस जीवन का सार यही है
वर्तमान में जी लो बंधु
कल का कुछ ऐतबार नहीं है
जीने का दम भरने वालों
जीना तुम्हें किधर आया है
रिक्त है जीवन, जीवन-चर्या
कोई न संगी, सरमाया है
ख़ुद को चाहा टूट - टूट, या
ख़ुद की परिधि में ही जीवन
उससे बाहर निकल सके न
छुआ न कोई और दुखी मन
दे दो एक पल दुखियारे को
ऐसा और उपकार नहीं है
वर्तमान में जी लो बंधु
कल का कुछ ऐतबार नहीं है
भागम-भाग लगी है हर पल
लेकिन लक्ष्य नहीं मालूम है
समय चक्र से होड़ लगी है
लूँ क्या पक्ष नहीं मालूम है
कभी समय ठहरा कर देखो
झुठलाये हर प्यार को देखो
भूल सतत बौराये जग को
जीवन के ठहराव को देखो
चाल बदल कर काल गति
को करना वश, दुष्वार नहीं है
वर्तमान में जी लो बंधु
कल का कुछ ऐतबार नहीं है
तिल-तिल सुलगे उद्वेलित मन
पल-पल हाथ निकलता जीवन
यूं तो बहुत जमा की पूंजी
चिंता पर असली संचित धन
सुंदर मुख फिर मृदुल बनाओ
भृकुटि, बल की छाप मिटाओ
हर दिन कर लो उत्सव जैसा
अंतरंग, प्रिय संग मनाओ
मन से धनी बने हैं जो जो
संग ईश्वर, संसार वहीं हैं
वर्तमान में जी लो बंधु
कल का कुछ ऐतबार नहीं है
~ अशोक सिंह
मई 3, 2015 न्यू यॉर्क
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