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गुरुवार, 7 मई 2015

तुम मिले....!


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याद जब आई तुम्हारी दिल खिला और तुम मिले
गीत जब भी गुनगुनाया मन खिला और तुम मिले

यूं बहुत सी मुश्किलें हैं रोज़ मर्रा काम में
जब मिली फ़ुर्सत तसव्वुर में घड़ी भर तुम मिले

रोक रखे थे न जाने बांध कब से आंसुओं के
बह गया सैलाब खारा मन खुला और तुम मिले

रात गुज़री लम्हा लम्हा बदलते करवट हज़ार
भोर बेला पलक झपकी, ख़्वाब आए तुम मिले

ज़िन्दगी बे-रब्त तन्हा, ग़म खुशी और धूप छांव
पर मुकम्मल हुयी बेशक जब कभी भी तुम मिले

बे-रब्त=बे-तरतीब

~ अशोक सिंह
   मई 1, 2015 न्यू यॉर्क

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