छूटे दिनचर्या
बंधन से,
आज हुए वो साठ साल के।
अब निवृत्त हुये कार्य-काल
से।
न होगी अब जल्दी सरपट
काम पे जाने की वह झट-पट
कंघा, दाढ़ी, खाओ, भागो
देर हो गई, रोज़ की खट-पट
अब तो सब दिन सुबह सुहानी
न चिंता, न कोई कहानी
अलसाई सी कभी, कभी तो
गरम चाय की चुस्की छानी
सजे हैं कुर्ते पैजामे मे
ऊपर से इक शाल डाल के,
आज हुए वो साठ
साल के।
अब निवृत्त हुये कार्य-काल से।
अब तक रहे, बंधे बंधन से
काम, समय, सौ
अनुशाशन से
पत्नी, बच्चे, ताऊ, भतीजी
कैसे सुनते सबके किस्से
अब सबको ही समय मिलेगा
दिन का ज्यों आकार बढ़ेगा
होंगीं सबसे मीठी बातें
दिल से दिल का प्रेम बढ़ेगा
लंबी सुबहें, शाम और रातें
बीतेंगे अब दिन फुर्सत के,
आज हुए वो साठ साल के।
अब निवृत्त हुये कार्य-काल
से।
गुड्डू की गुड़िया के संग अब
गुड़िया की तुतली बोली सब,
आत्मसात मन कर पाएगा
बेटा, बेटी, मूल, व्याज, रब
मित्र सभी घर अब आएंगे
मन जब हो बाहर जाएँगे
जीवन के इस नव-पड़ाव पर
जीवन-प्यार पुनः पाएंगे
कल की उपलब्धियों से गर्वित
संशित
आने वाले कल से
आज हुए वो साठ
साल के।
अब निवृत्त हुये कार्य-काल से।
~ अशोक
सिंह
अप्रैल 16, 2015
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