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रविवार, 4 अगस्त 2013

मुक्तक - क्यों लज्जित केदार नाथ?



2013, उत्तराखंड के पहाड़ों पर आई प्रलय पर एक प्रलाप;

प्रकृति के प्रकोप से क्यों त्रसित देवभूमि, नाथ
हिल उठे विराट-हृदय, ऐसा क्यों सर्व नाश ?
पर्वतों का शीश सदा उठता नभ-नील ओर
कैसा ये सावन, क्यों लज्जित केदार नाथ ?

prakriti ke prakop se kyon trasit devbhoomi, nath
hil uthe virat hriday, aisa kyon sarv nash?
parvato.n ka sheesh sada uthata nabh neel ore
kaisa ye sawan, koy.n lajjit Kedar-Nath?
~ अशोक सिंह
  न्यू यॉर्क, 2013

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