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शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

सत्तर बरस, अनगिनत घडिया

७० वीं वर्षगांठ के अवसर पर...,

सत्तर बरस, अनगिनत घडिया |
सुन्दर सजी सहस्त्रो लडिया ||
कर्मठता की डगर छोड़ अब |
जोड़ी प्रेम मयी सब कडिया ||

प्रेम प्रगाढ़ भरे बंधन है |
फूले-फले है यही कामना ||
आनंद मय ये प्रहर सुनहरा |
शाश्वत रहे, है यही प्रार्थना ||

छोटी सी पर सकल ये दुनिया|
सुन्दर सजी सहस्त्रो लडिया ||

~ अशोक सिंह  
    न्यू यॉर्क, 12/23/11
  

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Are you already 70? I did not know. 'hope you live for another 70 years!

Ashok Singh ने कहा…

अमां, कोई अपनी वर्षगांठ पर कविता लिखता है क्या? यह कविता हमारे मित्र के पिता-श्री पर लिखी गई थी :)