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सोमवार, 19 दिसंबर 2011

आज अनमना सा है दिल कुछ...!

तुमने घर के आँगन मे कब बोया पेड़ गुलाबों का
घर की चारदीवारी मे अब फूल खिलेगा कांटो का

कौन आग से खेल रहे हो, कौन से ग़म का मातम है
क्या से क्या देखो कर डाला अपने सबके सपनों का

अभिनय वो फनकारी है वज़न बात मे रख देती है,
केवल बोले सच तो करता कौन भरोसा अपनों का ।

ऐसी भी मजबूरी के दिन देख चुके फाका-मस्ती में
पड़ी उठानी चीजें वो भी, जिन पर हक़ था सच्चों का ।

जब जब बात करी है तुमने, बस शिकवों की बात करी,
आज अनमना सा है दिल कुछ, जिक्र करो बस बच्चों का ।

~ अशोक सिंह  
  न्यू यॉर्क 

2 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

कौन आग से खेल रहे हो, कौन से ग़म का मातम है
क्या से क्या देखो कर डाला अपने सबके सपनों का
Sundar!

Ashok Singh ने कहा…

Kshama ji, dhanywad.