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रविवार, 20 नवंबर 2011

सूरज पे रोशनी !

अगर चाँद पर चाँदनी नहीं है होती,
तो क्या सूरज पे भी रोशनी नहीं होती

मेरे घर के किवाड़ खुद ही खुल जाते हैं,
उनके आने मे कोई आहट भी नहीं होती

रेत तो रेत है, निकल जाएगी पैरो के तले,
कोसते रेत को, जिसकी नीयत है यही होती

रेत पर नाम लिखा और वो बह भी गया
लौ मे जलने वालों की कोई उम्र नहीं होती

कभी मिलना फुर्सत मे तो बताएँगे हम भी
चाहत मे हमारी दर-ओ-दीवार नहीं होती।

~ अशोक सिंह  
   न्यू यॉर्क 

2 टिप्‍पणियां:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…




रेत पर नाम लिखा और वो बह भी गया
लौ मे जलने वालों की कोई उम्र नहीं होती

वाह वाऽऽह ! क्या बात है ! सुंदर !

प्रिय बंधुवर अशोक सिंह जी
सस्नेहाभिवादन !

अंतर्जाल-भ्रमण करते हुए आपके ब्लॉग पर पहुंचना अच्छा लगा
प्रस्तुत रचना सहित आपकी पुरानी प्रविष्टियां भी देखीं …
आपके कवि-मन ने प्रभावित किया :)

बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Ashok Singh ने कहा…

राजेंद्र जी, उत्साह-वर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
साभार,