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शनिवार, 6 मार्च 2010

मेरा भारत महान - एक और नजर....


'अनेकता मे एकता' के गूंजते हर तरफ़ गान
सर उठे सबका हमारा, गर्व से हो यही भान ।
गीत सतरंगी, हमारे ग़ालिब और टैगोर के,
एक भारत है हमारा, एक ही सबका है मान ॥

आज है कमजोरियां, हममें बहुत माना सही
कल की पीढ़ी से मिला जो बस वही माना सही ।
वो भी मारे थे बेचारे नोन लकड़ी तेल के,
हम कहें कैसे कि उनकी सोच ऐसी क्यों रही ॥

बदलती हैं रीत सारी, आज कल या लगे परसों
जड़ें इनकी अगर गहरी, कभी लगते शायद बरसों ।
मन का लालच, घृणा तृष्ना और भी होती प्रबल,
आधी जनता भूख से हर रात न जब पाये सो ॥

हम भी तो अब आ खड़े उस अहं जीवन मोड़ पर
एक पीढ़ी खड़ी आगे युव-अवस्था छोर पर ।
मार्ग दर्शन हम करें या माप दंड बना के दें,
एक मौका मिला हमको, चल न देना छोड़ कर ॥

एक से ही शुरु होता कोई अच्छा चलन, काम
मिल सवांरे युवा ताकत, मार्गदर्शन दे के मान ।
प्रगति हम ने करी है पर जूझ कर संघर्ष कर,
आने वालों के बना दें रास्ते सुखमय, आसान ।।

मत न देना ढील इस उन्माद में, उत्सर्ग में
राह थी ये कठिन, धुंधलापन अभी भी क्षितिज में
पर, आ खड़ा भारत हमारा अग्रजों की पंक्ति में
शीघ्र ही फ़िर कह सकोगे ’है मेरा भारत महान’ ।
शीघ्र ही फ़िर कह सकोगे ’है मेरा भारत महान’

जय हिंद



~ अशोक सिंह  
   न्यू यॉर्क 
 

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