प्रेम की चल डगर मे संग, राह कैसे मोड़ लूँ मैं?
साथ कैसे छोड़ दूँ मैं?
प्रीतम, प्रीत प्रेम से आगे
बंधन हैं पर, कच्चे धागे
प्रेम भँवर जा गहरे पैठे
उद्वित मन अब कैसे भागे
रग रग रंग गई प्रेम चुनरिया, धागा प्रेम तोड़ दूँ मैं
साथ कैसे छोड़ दूँ मैं?
दास-भक्ति सम प्रेम सिखा कर
कांता प्रेम की राह दिखा कर
काम, काम से निकल सुधा-मय
छितरे मन सर्वस्व पिला कर
धड़कन बनी चाप कदमों की, आँख कैसे खोल दूँ मैं
साथ कैसे छोड़ दूँ मैं?
न मैं तुम, न प्रेम त्रिवेणी
तुम मय मैं, तुम मेरी वेणी
पैठे गहरे आदि-अंत अब
मंथन करते बिंदु-त्रिवेणी
प्रेम जाप की महक फैल गई, वास कैसे छोड़ दूँ मैं
साथ कैसे छोड़ दूँ मैं?
~ अशोक सिंह
न्यू यॉर्क, Jan 15, 2015
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