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मंगलवार, 10 मार्च 2015

जो तुम आ जाती एक बार..!


जो तुम आ जाती एक बार!




सुर-मय हो जाते मन के तार
प्यासी चितवन बोझिल आँखें
तन रोम - रोम करता गुहार
प्रियतमा छवि को देख द्वार
मन करता मन से मनुहार  
अँखियों से मादक नज़र डार
न्योछावर, कर सोलह सिंगार
मुझ-मय हो जाती सभी हार
कर इस जीवन का पूर्ण सार,
जो तुम आ जाती एक बार...!

मन सिंदूरी महका होता
गुल मन-आँगन चहका होता
सपनों की सेज से अलसाया
तन मद- उन्मत्त बहका होता
कब से चुप चाहें कुछ कहतीं
भावुक आहें  न चुप रहतीं
सबकी गुहार करती द्योतित
बाहें आलिंगन को उठतीं
देती तुम पर सर्वस्व वार,
होतीं तुम मैं बस और प्यार,
जो तुम आ जाती एक बार….!

~ अशोक सिंह
  न्यू यॉर्क, मार्च 10, 2015

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