जो तुम आ जाती एक बार…!
सुर-मय हो जाते मन के तार
प्यासी चितवन बोझिल आँखें
तन रोम - रोम करता गुहार
प्रियतमा
छवि को देख द्वार
मन करता मन से मनुहार
अँखियों से मादक नज़र डार
न्योछावर, कर सोलह सिंगार
मुझ-मय हो जाती सभी हार
कर इस जीवन का पूर्ण सार,
जो तुम आ जाती एक बार...!
मन सिंदूरी महका होता
गुल मन-आँगन चहका होता
सपनों की सेज से अलसाया
तन मद- उन्मत्त बहका होता
कब से चुप चाहें कुछ कहतीं
भावुक आहें न चुप रहतीं
सबकी गुहार करती द्योतित
बाहें आलिंगन को उठतीं
देती तुम पर सर्वस्व वार,
होतीं तुम मैं बस और
प्यार,
जो तुम आ जाती एक बार….!
न्यू यॉर्क, मार्च 10, 2015
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें