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बुधवार, 18 सितंबर 2013

मुक्तक - बिछड़े जो मिल कर तुझसे

बिछड़े जो मिल कर तुझसे, 'मुकद्दर' की बात थी
फिर दर्द-ए-दिल का सिलसिला, तेरी-ही सौगात थी
अब दर्द, शिकवे इंतज़ार का जिक्र भी क्यूँ-कर करें,
जब शुरू तुझसे खत्म तुझसे तुझसे ही सब बात थी

~ अशोक सिंह
   न्यू यॉर्क, सितंबर 14, 2013

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