गर
वो कहें कि तुमसे रूठ जाएँगे
सोच लो किस तरह मनाओगे
ये नातवानी उन्ही की चाहत से
तुम भला किस तरह छुपाओगे ।
शिनासाई ये फकत चार दिन की
उम्र भर कैसे इसे निभाओगे ।
हसरतों के फूलों से बहले खूब
खारे-आरज़ू से कैसे निभाओगे
आज जलवा-गर अंजुमन में बैठे हैं
कल की महफिल कहाँ सजाओगे ।
वस्ल की रात की बात करते हो
अंजामे-इश्क़ को कैसे निभाओगे
नातवानी - दुर्बलता, शिनासाई - पहचान
~ अशोक सिंह, न्यू यॉर्क
11-10-12
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