समय के फेर में क्या कुछ नहीं बदलता है, वियोग मे बदलाव कुछ ज्यादा ही मन
कॊ चुभते हैं । ऐसे में अगर वो मिल जायें जिनसे सारे गिले-शिकवे किये जा
सकें तो, जैसे आग मे घी काम करती है वैसे ही मन के गुबार निकलने शुरू हो
जाते हैं.....!
कितने अरसे बाद मिले हो,
मन से बाहर तुम निकले हो
कितने सावन, पतझर, मौसम, सब बेमानी बीता सा है !
सब-कुछ कुछ बदला सा है !
मैं ऊपर से इंसान वही,
चेहरा वो, मुस्कान वही,
पर अंतर्मन की दबी कूक में, दर्द तुम्हारे जैसा है !
सब-कुछ कुछ बदला सा है !
रात्रि प्रहर की बात न छेड़ो
या दिन की सौगात न छेड़ो
रातों क्या अब दिन में भी, जीना मुश्किल सा है !
सब-कुछ कुछ बदला सा है !
भरी दोपहर श्राप बन गयी
दिनचर्या संताप बन गयी
सुबह शाम की उलझन में, सब कुछ उलझा सा है !
सब-कुछ कुछ बदला सा है !
माया मोह छोड़ न पाया
तुमसे भी मुख मोड़ न पाया
मरते जीते सोते जगते, देखा इक सपना सा है !
सब-कुछ कुछ बदला सा है !
जीया फिर मैं किस उमंग में
कटता जीवन किस तरंग में
अपने में कुछ ढूंढ़ सका न, जो भी चाहा तुम सा है!
सब-कुछ कुछ बदला सा है !
बदला अंदर का इंसान,
तुमसे थी जिसकी पहचान,
जो तुमने देखा जाना, क्या अब भी वो वैसा है !
सब-कुछ कुछ बदला सा है ?
मौसम बदले इससे पहले,
कदम डगमगे इससे पहले,
सम्हला गिर कर पहले पर, अब उठना मुश्किल सा है !
सब-कुछ कुछ बदला सा है !
कितने अरसे बाद मिले हो,
मन से बाहर तुम निकले हो
कितने सावन, पतझर, मौसम, सब बेमानी बीता सा है !
सब-कुछ कुछ बदला सा है !
मैं ऊपर से इंसान वही,
चेहरा वो, मुस्कान वही,
पर अंतर्मन की दबी कूक में, दर्द तुम्हारे जैसा है !
सब-कुछ कुछ बदला सा है !
रात्रि प्रहर की बात न छेड़ो
या दिन की सौगात न छेड़ो
रातों क्या अब दिन में भी, जीना मुश्किल सा है !
सब-कुछ कुछ बदला सा है !
भरी दोपहर श्राप बन गयी
दिनचर्या संताप बन गयी
सुबह शाम की उलझन में, सब कुछ उलझा सा है !
सब-कुछ कुछ बदला सा है !
माया मोह छोड़ न पाया
तुमसे भी मुख मोड़ न पाया
मरते जीते सोते जगते, देखा इक सपना सा है !
सब-कुछ कुछ बदला सा है !
जीया फिर मैं किस उमंग में
कटता जीवन किस तरंग में
अपने में कुछ ढूंढ़ सका न, जो भी चाहा तुम सा है!
सब-कुछ कुछ बदला सा है !
बदला अंदर का इंसान,
तुमसे थी जिसकी पहचान,
जो तुमने देखा जाना, क्या अब भी वो वैसा है !
सब-कुछ कुछ बदला सा है ?
मौसम बदले इससे पहले,
कदम डगमगे इससे पहले,
सम्हला गिर कर पहले पर, अब उठना मुश्किल सा है !
सब-कुछ कुछ बदला सा है !
6 टिप्पणियां:
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ...
कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 16 -11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
Sangeeta ji, charcha manch par kavita prakashit karne ke liye bahut bahut dhanyawad.
Aapke sujhav ke anusar WORD VERFICATION ko hata diya gaya hai.
Dhanyawad.
sunder geet , badhai ho
--- sahityasurbhi.blogspot.com
बहुत सुंदर गीत
Dilbag ji, Rakesh ji, dhanywad
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