बंधनों से सजे दीवानगी के ये मंसूबे !
प्रेम के सतरंगी सात वर्षों में,
क्या पाया, और क्या नहीं पाया ।
सात समुंदरों का प्यार
हर सुबह, हर शाम
प्यार मे सराबोर,
रात के सपने संजोते
अलसाती सी भोर,
डूब जाने दो अपने आंचल मे
आज, कल और इस युग के समापन तक,
ठहर जाने दो ये पल
मेरे और तुम्हारे अंतर्मन तक ।
सपने तो सजे हैं
बीज भी बोये ही हैं
लहलहाने दो, इनको बेरोकटोक
सारे संसार मे
इनकी खुशियां बिखर जाने दो...!
2 टिप्पणियां:
प्रेम की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....
आप भी पधारो आपका स्वागत है ...
pankajkrsah.blogspot.com
Pankaj ji, dhanyawad.
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