ये कुछ पंक्तियां चिन्मयानंद आश्रम की प्रखर वक्ता ब्रम्ह्चा. सुमति चैतन्य की वाशिंटन डी. सी. की यात्रा के दौरान, उनके सम्मान में लिखी गयी थीं ।
ज्ञानशिखा चिर-ज्योति प्रज्जवलित,
ऊर्ध्व सारिणी, विश्व तारिणी।
सुमति, 'प्रचंड', प्रवाहित धारा,
दुर्गति नाशिनि, ब्रम्हचारिणी।
दें हमको आशीष पुण्यमयि,
बने ह्रुदय सद्सार-ग्राहणी।
देवी नमन तुम्हे है शत शत,
कथा उपनिषद, तेज धारिणी।
~ अशोक सिंह
न्यू यॉर्क
ज्ञानशिखा चिर-ज्योति प्रज्जवलित,
ऊर्ध्व सारिणी, विश्व तारिणी।
सुमति, 'प्रचंड', प्रवाहित धारा,
दुर्गति नाशिनि, ब्रम्हचारिणी।
दें हमको आशीष पुण्यमयि,
बने ह्रुदय सद्सार-ग्राहणी।
देवी नमन तुम्हे है शत शत,
कथा उपनिषद, तेज धारिणी।
~ अशोक सिंह
न्यू यॉर्क
2 टिप्पणियां:
अशोक जी कहाँ हैं ... कोई नं. नहीं मिल रहा आपका.... !
if i gave you a song, could you write some sweet lyrics
एक टिप्पणी भेजें